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देवभूमि उत्तराखण्ड की बेटी प्रीति ने आईएसएस (ISS) में पाई ऑल इंडिया में नवीं रैंक
देवभूमि उत्तराखण्ड की बेटी प्रीति ने आईएसएस (ISS) में पाई ऑल इंडिया में नवीं रैंक
राज्य की होनहार प्रतिभाओं का जलवा जारी है। देवभूमि उत्तराखंड का बेटा हो या बेटी आज दोनों ने हर क्षेत्र में अपने प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर देकर अपनी प्रतिभाओं का लोहा मनवाया है। आज हम आपको एक और ऐसी ही होनहार बेटी से रूबरू करा रहे हैं जिसने अपनी प्रतिभा के बल पर आईएसएस की परीक्षा में ऑल इंडिया स्तर पर नौवीं रैंक हासिल की है। जी हां.. हम बात कर रहे हैं राज्य के नैनीताल जिले के हल्द्वानी निवासी प्रीति तिवारी की, जिसने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित इंडियन स्टैटिस्टिकल सर्विस परीक्षा-2019 में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। बता दें कि प्रीति मूल रूप से राज्य के बागेश्वर जिले के नैणी गांव की रहने वाली है और वर्तमान में परिवार के साथ हल्द्वानी के कुसुमखेड़ा गैस गोदाम रोड स्थित दुर्गा विहार कालोनी में रहती हैं। उनकी इस उपलब्धि से जहां पूरा परिवार खुश हैं वहीं पूरे क्षेत्र में भी हर्षोल्लास का माहौल है। क्षेत्रवासियो का कहना है कि प्रीति ने जिले के साथ ही राज्य का नाम भी पूरे देश में रोशन किया है। प्रीति ने अपनी इस अभूतपूर्व सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और गुरुजनों को दिया है।
बैंक से लोन लेकर पिता ने पूरी करवाई स्नातक की पढ़ाई:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रीति ने यूपीएससी द्वारा शुक्रवार को घोषित आईएसएस के परीक्षा परिणामों में पूरे देश के नौवीं रैंक हासिल की है। अपनी स्कूली शिक्षा हल्द्वानी के बिड़ला स्कूल से अच्छे अंकों से उत्तीर्ण करने वाली प्रीति के पिता मोहन तिवारी एचएमटी हल्द्वानी में लेखा अधीक्षक पद से सेवानिवृत्त हैं जबकि उनकी माता रजनी तिवारी एक कुशल गृहणी हैं। सबसे खास बात तो यह है कि वनस्थली विद्यापीठ जयपुर से बीएससी और एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली प्रीति ने अपने दूसरे प्रयास में ही आईएसएस में सफलता हासिल की है जो कि वाकई काबिले तारीफ है। बता दें कि प्रीति ने इससे पिछले वर्ष 2018 की लिखित परीक्षा में भी सफलता हासिल की थी परन्तु वह इंटरव्यू निकालने में असफल रही। अपनी इस असफलता को ही सबसे बड़ा हथियार बनाने वाली प्रीति का कहना है कि एचएमटी के बंद होने से उनके परिवार को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ा, कई बार तो महीनों तक पिताजी को सैलरी नहीं मिल पाती थी। जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति भी काफी कमजोर हुई। लेकिन पिताजी ने कभी भी इसका प्रभाव उनकी पढ़ाई पर नहीं पड़ने दिया और बैंक से लोन लेकर जहां उनकी स्नातक की पढ़ाई पूरी करवाई वहीं परास्नातक की पढ़ाई अच्छी तरह करने में कालेज से मिली स्कालरशिप से काफी सहायता हुई।